Bollywood Should learn these 5 points from South Cinema: साउथ फिल्में इन दिनों हिंदी भाषी दर्शकों के दिलों पर भी राज कर रही हैं। सिर्फ तेलुगु ही नहीं, तमिल, मलयालम और कन्नड़ भाषा की फिल्में भी लोगों का दिल जीत रही है। यही वजह है कि इन फिल्मों पर अब हिंदी दर्शक भी आस लगाए बैठे हैं। कुछ दिनों में कई पैन इंडिया फिल्में रिलीज होने वाली हैं। जिसमें आरआरआर (RRR), केजीएफ 2 (KGF 2), वलीमाई (Valimai) और राधे श्याम (Radhe Shyam) जैसी बड़ी बजट की फिल्में हैं। जबकि हाल के दिनों में बॉलीवुड फिल्मों की लोकप्रियता काफी कम होती जा रही है। इसका असर हिंदी फिल्मों के कारोबार पर भी दिख रहा है। साल 2020-21 में जहां साउथ सिनेमा ने कई बेहतरीन फिल्में इंडस्ट्री को दी। जिनकी चर्चा नॉर्थ इंडिया तक होने लगी। Also Read - ‘पुष्पा 2’ के लिए 100 करोड़ रुपये लेंगे अल्लू अर्जुन!!
वहीं, बॉलीवुड के हाथ सूर्यवंशी ही लगी जिन्हें देखने लोग भारी संख्या में थियेटर पहुंचे। जबकि इसी बीच सत्यमेव जयते 2, अंतिम और रणवीर सिंह स्टारर फिल्म 83 की नाक के नीचे साउथ स्टार अल्लू अर्जुन की फिल्म पुष्पा हिंदी दर्शकों के बीच भारी कमाई ले उड़ी। कोरोना काल के दौरान साउथ सिनेमा मास्टर, वकील साब, क्रैक, दृश्यम, कर्णन, जय भीम और पुष्पा जैसी बड़ी हिट फिल्में दे चुका है। दूसरी तरफ, बॉलीवुड सिर्फ मुंह देखता रह गया। तो आखिर ऐसा क्या हुआ जो हिंदी सिनेमा, हिंदी भाषाई लोगों का प्यार नहीं पा सका है। जबकि भाषाई हिसाब से देखें तो बॉलीवुड के दर्शकों की संख्या साउथ दर्शकों की तुलना में काफी ज्यादा है। फिर भी बॉलीवुड साउथ सिनेमा से पिछड़ता दिख रहा है। आइए समझते हैं।
कहानी ही है रियल हीरो
साउथ सिनेमा और हिंदी सिनेमा में आजकल एक बड़ा फर्क ये है कि फिल्ममेकर्स कहानी पर कम ही वक्त जाया करते है। जबकि यही एक सबसे बड़ी और मजबूत चीज है। 'कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा' ये सवाल सिर्फ मजबूत स्क्रिप्ट की वजह से ही इतना बड़ा बन गया था कि लोगों ने 2 साल तक बाहुबली के सीक्वल के लिए बेसब्री से इंतजार किया। शायद ही कोई होगा जो इस फिल्म से संतुष्ट न हुआ हो। सेटिसफेक्शन की ये कमी ज्यादार फिल्मों में दिखती है। ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड ने अच्छी स्क्रिप्ट नहीं दी हो। बधाई हो, राजी, संजू, अंधाधुन, स्त्री, आर्टिकल 15, जैसी फिल्में कसी स्क्रिप्ट, बेहतरीन कहानी के दम पर ही चली थी। Also Read - Vijay Deverakonda Upcoming Movies List: विजय देवरकोंडा के खाते में हैं ये धांसू फिल्में, बॉक्स ऑफिस पर मचेगा कोहराम
सोलो हीरो पर दांव लगाने की गलती
बॉलीवुड में सोलो हीरो का चलन इतना ज्यादा है कि उसके आगे सपोर्टिंग कास्ट को बुरी तरह नजरअंदाज कर दिया जाता है। जबकि साउथ फिल्मों में बड़े लीडिंग स्टार के साथ भी सपोर्टिंग कास्ट को कमतर नहीं आंका जाता। महेश बाबू से लेकर अल्लू अर्जुन तक, बड़े सितारों के सामने एक मजबूत सपोर्टिंग कास्ट रखी जाती है। जो कहानी को मजबूती से आगे बढ़ाते हुए दिखते हैं। बॉलीवुड की जिन फिल्मों में ऐसा हुआ है उसके नतीजे भी अच्छे रहे है। फिर चाहें बरेली की बर्फी, स्त्री हो या फिर बधाई हो। हालांकि ऐसा कितनी ही बॉलीवुड फिल्मों में होता ये सभी को पता है। इस वजह से फिल्मों में सभी इमोशन्स खुलकर सामने नहीं आ पाते। Also Read - KGF 2 से लेकर Vikram तक, साउथ की इन फिल्मों पर ओटीटी मालिकों ने लगाया करोड़ों का दांव
आम लोगों की जिंदगी से दूर बॉलीवुड
बॉलीवुड की कितनी ही फिल्में ऐसी हैं जो सोशल मुद्दों पर बनती हैं। अगर बन भी जाएं तो बुरी तरह ट्रोल होने लगती है। जबकि साउथ सिनेमा जमीनी हकीकत के ईर्द-गिर्द फिल्में बुनने पर ध्यान रखता है। जय भीम और असुरन इसके क्लासिक उदाहरण है। बॉलीवुड में पिछले कुछ सालों में ऐसी फिल्मों पर देखेंगे तो ले देकर मुल्क और पिंक जैसी इक्का-दुक्का ही फिल्में हाथ लगेगी जिसने एक सोशल मुद्दे को खूबसूरती से छुआ था।
ऑरिजनेलिटी की कमी
ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड इंडस्ट्री के पास टैलेंट की या तकनीक की कमी है। बॉलीवुड के पास सबकुछ ज्यादा है, बस वक्त नहीं है। ऐसा लगता है कि एक फैक्ट्री है जिसमें जल्दी से फिल्मी मसाले डालने हैं और इंस्टेंट फिल्म बनाकर करोड़ों रुपये कमाने है। हिंदी फिल्मों में ऑरिजनेलिटी की काफी कमी है। बैक टू बैक रीमिक्स गाने, रीमेक फिल्में, झटपट गाने बस सबकुछ जल्दीबाजी में चाहिए। जिसकी वजह से हिंदी फिल्में ऑरिजनेलिटी खोने लगी हैं।
फैंस से टूटा बॉलीवुड का कनेक्शन
साउथ फिल्मी सितारों की फैन फॉलोइंग के मुकाबले आज भी बॉलीवुड सितारों की फैन फॉलोइंग काफी कम है। हम यहां सोशल मीडिया हैंडल पर मिलने वाले फॉलोअर्स की बात नहीं कर रहे। जमीनी हकीकत पर फिल्मी सितारों को मिलते रिस्पॉन्स की बात कर रहे हैं। पुष्पा की रिलीज के वक्त अल्लू अर्जुन के लिए सामने आती लोगों की दीवानगी, लाइगर के वक्त विजय देवरकोंडा के लिए दिखा लोगों का क्रेज या फिर महेश बाबू और पवन कल्याण, चिरंजीवी, रजीनकांत के लिए उमड़ती लोगों की भारी भीड़ के लिए अब हिंदी सितारे तरसते हैं। इसकी वजह लोगों से टूटता बॉलीवुड का कनेक्शन है। मुंबई नगरिया की चकाचौंध में रहने वाले सितारे अपनी रूट्स से कट जाते हैं। लोगों से संपर्क उनका वैसा नहीं है जैसा पहले कभी राजेश खन्ना, देवानंद या फिर राज कपूर का हुआ करता था।
खैर, बॉलीवुड में भी सभी कुछ बुरा नहीं है। शेरशाह और सूर्यवंशी जैसी फिल्में बताती हैं कि अभी भी लोग थियेटर आना चाहते हैं अच्छी फिल्में देखने। न कि सिर्फ स्टारडम के नाम पर बेसिर-पैर की कहानी देखने। आने वाले वक्त में भी कई साउथ फिल्में दर्शकों की नजरों पर है। ऐसे में जरूरी है कि वक्त रहते बॉलीवुड जाग जाए।
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